सिरसा 25 नवम्बर(सुनीत सरदाना) किसी भी फसल को बोने से पहले यदि बीज का सही उपचार किया जाए तो फसलों को अनेक प्रकार के रोगों से बचाया जा सकता है।
अच्छे उत्पादन के लिए विशेषज्ञ की सलाह से किया गया बीज उपचार बहुत आवश्यक है। उपर्युक्त वाक्य पौधा रोग विशेषज्ञ डॉ एच एस
सहारण ने कार्यक्रम हैलो सिरसा में अपराजिता के साथ बातपीत के दौरान कहें। प्रस्तुत है बातचीत के संपादित अंश-
प्रश्न-गेंहू में पायी जाने वाली मु य बीमारियां कौन-कौन सी हैं और उनके मु य लक्षण क्या हैं?
उत्तर-गेंहू में निमेटोड सिमोलिया, पत्तों की कांगयारी, करनाला बंट आदि बीमारियां पाई जाती है। मोलिया बिमारी पौधें के जन्म से शुरू
हो जाती है। इसमें जड़ें झाडऩुमा तथा पत्तें पीले हो जाते है। पौधें का फुटाव कम होगा तथा खुराक की कमी लगेगी। पत्तों की
कांगयारी ऊपर के पत्तें में काली धारियां बन जाती है, बालियां कमजोर निकलेंगी। खुली कंगयारी रोग में बालियां काली हो जाती है।
ऐसे पौधें दूसरों से ल बें व पीलापन लिये होंगे। दानों की बजाय काला पाउडर बालियों से निकलेगा। इनके अतिरिक्त करनाल बंट 1929
में करनाल में पायी गई। इसमें बाल के दानों का एक तिहाई हिस्सा काला हो जाता है। इन सबसे गेंहू को काफी नुकसान उठाना पड़ता
है।
्रप्रश्न- बिजाई से पहले निमेटोड का ईलाज किस प्रकार होगा?
उत्तर- रेतीली भूमि में यह बिमारी आम पाई जाती है। इससे बचने का सबसे कारगर उपाय यही है कि फसलचक्र अपनाया जाए। दूसरा
तरीका यह है कि इसमें राज एम आर 1 की पैदावार की जाए। यदि यह बीज उपलब्ध न हो तो गेंहू बिजाई से पहले कार्बोफिरॉन
(फिराडॉन)13 किलो एक एकड में डालकर इससे बचा जा सकताा है।
प्रश्न- सरसों की फसल में मु यत: क्या क्या बिमारियां लगती है?
उत्तर- सरसों की फसल में मु यत: सफेद रतवा, जिसमें पत्तों के नीचे सफेद दाग हो जाते हैं। इसके अतिरिक्त आब्डरनेरिया ब्लाइड व
पौधा सूखना, जिसको तना गलन भी कहा जाता है आदि बिमारियां सरसों की फसल को बहुत नुकसान पहुंचाती है।
प्रश्न- किसानों के दृष्टिकोण से कृषि विज्ञान केन्द्र की क्या भूमिका है?
उत्तर- किसानों को सही दिशा निर्देश उपलब्ध करवाने में कृषि विज्ञान
केन्द्र की भूमिका बहुत महत्वपूर्ण है । फसलों में कोई भी बीमारी
होने पर यहां से पल की जांच करवा सकते हैं जिसके आधार पर उन्हें उपचार के तरीके विशेषज्ञ द्वारा बताए जाते हैं। बीमारी की सही
पहचान नहीं होने पर किसान के खेत में जाकर भी फसलों का निरीक्षण भी किया जाता है, ताकि फसलों को विभिन्न रोगों से बचाया जा
सकें।
प्रश्न- गेंहू के बीज उपचार का क्या तरीका है?
उत्तर - गेंहू के बीच उपचार के लिए सबसे पहले तो दीमक से उपचार शामिल है। इसके लिए 40 किलो बीज में 60 एम एल
क्लोरोपारीफॉस या 140 एम एल एन्डोसलफॉन या फासमाइट 200 एम एल का दो लीटर का घोल बीज में मिलाकर रात को हवा में सूखा
लें व सुबह इसमें रेक्सिल से 40 ग्राम सूखा उपचार करें। इससे दीमक तथा अन्य तरह की बीमारियों से बचा जा सकता है।
प्रश्न- खाद व बीमारियों का क्या संबंध है?
उत्तर- यदि हम यूरिया या नाइट्रोजन की ज्यादा मात्रा डालेंगें तो जमीन व बीज से फैलने वाली बीमारियां अधिक होंगी। इसी तरह
फासफोरस तथा पोटाश डालेंगें तो कुछ बीमारियों से बचा जा सकता है। इस प्रकार कहने का अभिप्राय है कि हमें मिट्टी की जांच के
आधार पर संतुलित मात्रा में ही खाद का प्रयोग करना चाहिए।
प्रश्न- पेस्टीसाइड के दुरूप्रयोग पर आप किसान भाइयों को क्या सुझाव देना चाहोगे?
उत्तर- हमारे क्षेत्र में पेस्टीसाइड के दुरूप्रयोग की समस्या बहुत अधिक है। लोग नरमा कपास तथा धान की फसल में बिना सोचे समझे
पेस्टीसाइड का उपयोग करते हैं। मैं कहना चाहूंगा की कि किसान भाइयों को बिना किसी विशेषज्ञ की सलाह के पेस्टीसाइड का अंधाध्ूांध
प्रयोग नहीं करना चाहिए।
प्रश्न- फसल की गुणवत्ता पर विभिन्न रोगों का क्या असर होता है?
उत्तर- अनेक प्रकार के रोगों के कारण फसल की गुणवत्ता पर असर अवश्य पड़ता है। इससे वजन व पैदावार कम हो जाती है। यदि
सरसों में करनाल बंट रोग है तो निर्यात के दौरान बहुत समस्या होती है। दानों का रंग बदल जाता है व तेल की गुणवत्ता भी प्रभावित
होती है। इसलिए अच्छी फसल वही है जो किसी भी प्रकार के रोग से ग्रस्त ना हों।
प्रश्न- सिरसा में फसलों से संबंधित किस प्रकार की बीमारियां मु यत: पाई जाती है?
उत्तर- सिरसा क्षेत्र में कुछ रेतीली भूमि है कुछ धान का क्षेत्र भी है। जो रेतीला क्षेत्र है वहां नीमेटोड की समस्या बहुत अधिक है। इसके
अतिरिक्त जिंक की कमी, मैग्नीज की कमी व सल्फर की कमी भी सिरसा की भूमि में पाई जाती है। इनसे बचने के लिए मिट्टी की जांच
परम आवश्यक है।
प्रश्न- अंत में किसान भाइयों को कृषि से संबंधित क्या संदेश देना चाहोगे?
उत्तर- मैं कहना चाहूंगा कि किसान भाई बिना विशेषज्ञ की सलाह के अपनी उपजारू भूमि पर विभिन्न प्रकार के प्रयोग नहीं करने
चाहिए। विभिन्न तरह की समस्याओं से बचने के लिए फसलचक्र अपनान चाहिए, क्योंकि इससे भूमि की उर्वरता बनी रहती है।